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‘हिंदी साहित्य पर बौद्ध धर्म-दर्शन का प्रभाव’ (Buddhist Influence on Modern Hindi Literature)

Publication Type : Journal Article

Source : Volume 26, p.4 (2017)

Url : https://www.researchgate.net/publication/326106938_'hindi_sahitya_para_baud'dha_dharma-darsana_ka_prabhava'_Buddhist_Influence_on_Modern_Hindi_Literature

Campus : Bengaluru

Center : Spiritual Studies

Department : Samhita, Sanskrit & Siddhanta

Verified : Yes

Year : 2017

Abstract : आधुनिक हिंदी साहित्य की विधिवत शुरूआत 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से हुई है और लगभग यही समय भारत में लुप्तप्राय बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण-काल का भी है। इस समय जेम्स प्रिंसेप और अलेक्जेन्डर कनिंघम जैसे पुरातत्वविदों और मैक्समूलर जैसे उदभट संस्कृत विद्वानों के सत्प्रयास से बौद्ध धर्म के तीर्थस्थलों, स्मारकों व पाली एवं संस्कृत बौद्ध साहित्य का पुनरुद्धार हुआ। भारत में भी बौद्ध धर्म के इस पुनर्जागरण का श्रेय कुछ हद तक पाश्चात्य-जगत को जाता है जिसने इसमें रूचि ली और बौद्ध धर्म से सम्बन्धित स्थलों व साहित्य का परिष्कार किया। बुद्ध धर्म के इस पुनर्जागरण ने हिंदी जान-मानस को भी प्रभावित किया। ईश्वरवाद और आत्मवाद के अनिच्छुक इस धर्म दर्शन के समन्वयवादी रूप ने आधुनिक हिंदी साहित्य को एक नयी स्फूर्ति और चेतना दी लेकिन फिर भी एक बात स्पष्ट है कि आरंभिक दौर के आधुनिक हिंदी युग के कवि और रचनाकार भले ही अपनी रचनाओं की पृष्ठभूमि के रूप में कुछ प्रेरणा ली हो पर उनकी रचनाओं पर बौद्ध दर्शन के मूलभूत दार्शनिक सिद्धान्तों का प्रभाव अत्यंत अल्प था और जो कुछ भी दार्शनिक पृष्ठभूमि इनके रचनाओं में परिलक्षित हुई वह बौद्ध धर्म के तुलना में बौद्ध दर्शन से कुछ हद तक साम्यता रखने वाले औपनिषदिक दर्शन के अधिक निकट थी। संभवतः उनमें से अधिकांश बौद्ध धर्म के सैद्धांतिक स्वरूप से उस स्तर पर परिचित नहीं हो पाये थे जिस स्तर पर आज हुआ जा सकता है। वर्त्तमान समय में बौद्ध धर्म-दर्शन के वृहद् साहित्य के प्रकाश में आ जाने से समकालीन हिंदी साहित्य धारा से को एक नई गति मिली है, फिर भी इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि यह धारा वर्तमान राजनीतिक प्रभाव से अछूती रही है।बौद्ध दर्शन के मूल स्वर की उपेक्षा कर यह साहित्य-धारा बुध्द के दर्शन के बुनियादी सैद्धांतिक मूल्यों को नकारती रही है। बुद्ध को मतवाद व पंथवाद की संकीर्णता में बांधकर उनकी देशना के दार्शनिक पक्ष को नजरअंदाज कर, प्रायः उन्हें भौतिकवादी समाज सुधारक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। बुद्ध के दर्शनका सम्यक अध्ययन जीवन-दर्शन मूलतः आत्ममुक्ति के उदघोष का है।वह भौतिकवाद ओर संसार से पलायन, इन दोनों अतियों को नकार कर मध्यम-मार्ग का उपदेश है। यह दर्शन मानव को आत्मग्राही दृष्टि ओर आत्मकेंद्रितता से मुक्त कर,उसे परार्थ हित में समर्पित कर,जीवन को एक नया अर्थ देने का है । बौद्ध धर्म के इस पक्ष की ओर अभी हिंदी साहित्कारों की दृष्टि सामान्यतः नहीं गयी है।

Cite this Research Publication : Pranshu Samdarshi, “‘हिंदी साहित्य पर बौद्ध धर्म-दर्शन का प्रभाव’ (Buddhist Influence on Modern Hindi Literature)”, vol. 26, p. 4, 2017.

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